जन मन "मंजू-मुकुल" मल हरण,नाद स्वर निखिल जब हुआ
श्री गणेश सृष्टि के गर्भ में स्पंदित नूतन-काल तब हुआ।
दिग दिगंबर सब सजे मणि रत्न "दीपिका"थाल से
तुतरी बजी,डमरू बजे,"उत्तराँचल"-हिमशिखर कैलाश में।
"नौलखी" दिव्य कंचन मेखला सजी "शैलजा" ज्योति "तारा"
"भुवन"-पति "हर्ष"वर्धित श्रृंग चढ़े हाथ लिए सोम प्याला।
भूत-भावन,रूद्र-अर्धनग्न औढरदानी अखिलेश के
रूप अनेक,कुछ शांत ममत्व के तो कुछ कठोर रौद्र के।
"दीप्तांशु"-भाल जगत जननी,रूप राशि अद्भुत अलौकिक मूक "शारदा"
"संजय" उवाच मगन करते जग कल्याण हित दिव्य कृपा से सृष्टि गाथा।
तैतीस कोटि देव जन हाथ बांधे खड़े तत्पर दिगपाल से
मदिर नैन "नरेंद्र" जन "अतुल" वैभव निर्निमेष निहारते।
रति मद पराजित आज सम्मुख "सुप्रिया","विनीता"सौंदर्य बाला
मदनमोहन "प्रेमबल्लभ" तान मोहक छेड़ता बाँसुरी वाला।
नवग्रह मुदित मंगल,उदित प्रफुल्लित रोम-रोम "नलिन" खिले
सृष्टि के थरथराते उष्ण उर्जित होंठ रसीले अंकुरित ऐसे मिले।
ओम तत सत ओम
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