सत हरि नाम जगत सब सपना :रामचरितमानस का मूलमंत्र इस १/२ चौपाई में निहित है ऐसा कुछ विज्ञ जनो का मानना है। दरअसल इसमें कोई प्रश्न है भी नहीं। लेकिन यूॅ देखे तो तो मानस का शब्द-शब्द मन्त्रमय ही है। वह हमें ऊर्जा देता है। जीवन ऊर्जा एक एक सीमित रूप में नहीं अपितु समग्र रूप में सामजिक,आध्यात्मिक.... हर रूप में। इस जीवन में यदि कुछ सत्य है तो वह हरी नाम ही है,अर्थात ईश्वर का नाम ही सच्चा है बाकि सब बेबुनियाद,स्वप्नवत है। "राम ही सुमिरेहु रामहि गायेहु" की बात इसी लिए कही गयी क्योंकि जब आप अभ्यास करने लगते हैं तो उस सम्बंधित विषय पर आपकी पकड़ मजबूत होने लगती है। चाहे धीरे-धीरे ही सही। और ऐसा अच्छा भी है। यदि आप दूध से रबड़ी बनाना चाहें तो घंटों उसे धीमी आंच पर पकाते हैं।यहाँ तो फिर आध्यात्मिक रबड़ी की बात है और वह भी एक दिन नहीं,प्रतिदिन के लिए और मूलतः स्वान्तः सुखाय होते हुए भी वो कहीं न कहीं है तो सभी के लिए,"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामयाः"। "एकोहं द्वितीयो नास्ति" से यहाँ दूसरा है ही कौन। सब रामजी का ही तो विस्तार है तो इस मेरेपन में जो पर्दादारी आयी है वो हमारी ही उपजाई है। साईं उसे "तेली की दीवार" कह हटाने की बात कहते हैं। और जब वो हटने लगती है तो राम या कहें नाम के साथ आपकी तादत्य्मता बढ़ने लगती है। जिससे स्वतः ही आपका जगत से मोहभंग होने लगता है। जब आप वास्तविकता में ही आनंद का अनुभव कर रहे हों तो स्वप्न में आनंदित होने में वो आपको नगण्य सा ही लगेगा। उसका कोई प्रयोजन है भी नहीं। तलाश तो तब हो जब प्यास हो। अंतर से ही जब सहस्त्रधारा फूट रही हो तो बाहर के पानी को कौन पूछे। और ये जो नाम है - "राम" इसे चाहिए क्या? "रामहि केवल प्रेम पियारा" सो उसे तो केवल प्रेम यानी श्रद्धा का समर्पण ही चाहिए। और जब ये हो जाता है तो "राम" उसे अपना लेते हैं। पहले उन्होंने छोड़ा हुआ हो ऐसा तो नहीं है लेकिन अब बात वही है की हमारे अपने से जो पर्दादारी थी वह हटती है.आँख का जाल हट जाता है हमें सब कुछ साफ़,स्पष्ट दिखने लग जाता है। हमें भी स्वीकार्य हो जाता है की वो हमें अपनी गोद में लिए है। वैसे तो इस स्थिति से पहुँचने से पहले भी कुछ-कुछ अनुभव होने लगते हैं जिससे "राम" जी की सदस्यता,करुणा,कृपा,प्रेम प्रकट होते रहते हैं पर हम उसे अक्सर Taken For Granted यूँ ही हलके में,प्रोबेबिलिटी/संभावना के तौर पर ले लेते हैं। क्योंकि वैसे तो हर पल उसके श्री चरणों से कृपा की गंगधार बह ही रही है।
ॐ तत सत ॐ
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