मैं बेचैन हूँ क्यों आज इतना
मुझे तो मालूम है पर
मुझसे भी तो ज्यादा बेहतर
तुम्हें मालूम होगा साईं।
पर तुम तो चुपचाप,मौन हो
मेरी व्यथा-कथा जानते भी
अनजान बन बोलते नहीं हो।
और न भी कहो तो क्या?
मुझे तो अपने स्वार्थ से है वास्ता
मैं तो चाहता हूँ बस इतना
की तुम्हें जब मालूम है सब
तो फिर क्यों है कृपा देरी
करो बस मनोकामना पूरी
अन्यथा मेरे भरोसे का
जो जितना अब तक बना है
वो कहाँ रह पायेगा,तुम पर
और वो ही नहीं रहा तो
मेरा जीवन कहाँ चल पायेगा।
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