औरउ एक गुपुत मत सबहिं कहउँ कर जोरि
संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोर।।७ /४५
शिव-शंकर हैं आधार जगत के
विश्व-आस याने कि आस विश्व के।
मायाग्रस्त इस विश्व में रहते
आस रहे जो सब कुछ सहते।
अंतरमन तब आँख खुलेगी
राम भक्ति की धार दिखेगी।
उसी का अमृत पान किये जाने से
रहो जगत तुम "नलिन"नाल से।
संकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोर।।७ /४५
शिव-शंकर हैं आधार जगत के
विश्व-आस याने कि आस विश्व के।
मायाग्रस्त इस विश्व में रहते
आस रहे जो सब कुछ सहते।
अंतरमन तब आँख खुलेगी
राम भक्ति की धार दिखेगी।
उसी का अमृत पान किये जाने से
रहो जगत तुम "नलिन"नाल से।
No comments:
Post a Comment