जीवन के प्रतिदिन के संघर्षों की कठोर भूमि में सुख,शांति,प्रेम के फूल खिलाने के लिए मानव ने सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक अनेक प्रयत्न किये हैं। शोक,चिंता दुःख को भुला कर होठों पर हंसी गुनगुनाई जा सके इसके लिए ही संभवतः त्योहारों की परंपरा ने जन्म लिया होगा। जहाँ तक भारत वर्ष की बात है तो यहाँ तो प्रायः हर दिन ही कोई न कोई त्यौहार,पर्व,व्रत,धार्मिक कृत्य मनाये जाते रहे हैं। वहीँ अपनी "विश्व-कुटुंब" की उदार भावना के चलते दूसरे अन्य देशों के त्यौहारों को भी इसने अत्यंत आत्मीयता से आत्मसात कर लिया है। अन्य देशों के नागरिक जो अनेक पीढ़ियों से पूर्णतः भारतीय हो यहीं रहने लगे हैं के साथ यह देश उनके त्योहारों को पूरे जोश,उत्साह और आदर से मनाता है। ऐसा ही एक रंग रंगीला पर्व है -क्रिसमस जो कि 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिन के तौर पर मनाया जाता है।इसके प्राचीन इतिहास में यदि हम जाएँ तो देखते हैं कि 25 दिसंबर,रोम निवासी देव पूजकों हेतु पवित्र दिन था और इस दिन गुलाम अपने स्वामी के साथ गुलाम सा व्यवहार कर सकते थे। पहले के पारम्परिक यूरोपियन लोग इस ठण्ड भरे दिनों में सूर्य को बुलाने हेतु विशेष अनुष्ठान करते थे। दरसल उनका मानना था कि यह मौसम बुरी आत्माओं,भूतों,चुड़ेलों का है। एस्केंडिनवियन्स निवासी तो सूर्य की खोज में अपने कुछ दल भी भेजते थे और सूर्य को देखने की ख़ुशी में यूल के लट्ठों को जला कर बड़े भोज का आयोजन भी करते थे। कुछ लोग बसंत के आगमन की आशा में शंकु(कोनिफेरस ) वृक्ष की शाखाओं में सेब बाँध कर अपना उल्लास व्यक्त करते थे। रोमन लोग सैटनेर्लिया पर्व को मध्य दिसंबर से 1 जनवरी तक भोज के आयोजन और उपहारों के आदान-प्रदान द्वारा मानते थे। ऐसा विश्वास किया जाता है कि क्रिसमस त्योहारों का आरम्भ 98 ईस्वी से हुआ था। यद्यपि इसके 39 वर्ष पश्चात रोम के बिशप ने क्रिसमस संध्या पर इस परंपरा की नीव डाली। जूलियस प्रथम ने ,जो रोम के बिशप थे इसके 2 शताब्दी बाद से क्रिसमस मानाने के लिए 25 दिसंबर की तिथि सुनिश्चित की।
क्रिसमस की मुख्य थीम यद्यपि पूरे विश्व में एक जैसी होती है तथापि प्रत्येक देश में कुछ रिवाजों को मानाने में भिन्नता देखने में आती है। जैसे बेल्जियम में 6 दिसंबर को संत निकोलस दिवस मानते हुए लोग संत निकोलस के रूप में बच्चों को उपहार,भेंट देते है। ब्रेकफास्ट में बेबी जीसस के रूप आकार वाली मीठी ब्रेड "कोगोनो"पेश की जाती है। ब्राजील में फादर क्रिसमस "पापाई नोईल "के रूप में जाने जाते हैं। क्रिसमस संध्या पर चिकन,तुर्की,सूखा मांस,चावल,सलाद,सूअर का मांस,सूखे व् ताजे फल,बीयर के साथ जश्न मनाया जाता है। फ़िनलैंड में सांताक्लॉज के नाम हज़ारों चिट्ठियां आती हैं क्योंकि माना जाता है की सांता का निवास फ़िनलैंड का उत्तरी भाग था। यहीं पर एक थीम पार्क "क्रिसमस लैंड" भी निर्मित है। यहाँ के लोग क्रिसमस के तीन दिन घरों को खूब सुंदरता से सजाते हैं। दिन में "पीस ऑफ़ क्रिसमस" का रेडियो,टीवी में प्रसारण होता है। जर्मनी में बालक येशु के लिए लकड़ी की छोटी कुटिया बना कर रखी जाती है। अपने देश में चर्च और घरों में फूलों और बिजली की सजावट मंत्रमुग्ध कर देती है। दक्षिण भारत में मिट्टी के दिए जला कर लोग उल्लास मानते हैं। मुंबई में इनकी तादाद भारी मात्र में होने से यहाँ काफी पहले से इसका गर्मजोशी से स्वागत शुरू हो जाता है। यूँ अब तो पूरे भारत में यह त्यौहार बिलकुल भारतीय अंदाज और उमंग के साथ मनाया जाता है। बच्चों के लिए तो यह विशेष पर्व है। सांताक्लॉज़ तो उनकी आँखों का तारा है और वे सांताक्लॉज के। घर का कोई भी बड़ा बुजुर्ग बच्चों के सिरहाने चुपचाप से गिफ्ट रखकर अपने लिए भी ख़ुशी का स्वागत करने से नहीं चूकना चाहता।
इस दिन क्रिसमस ट्री को सजाने की भी मानयता है जिसके पीछे कथानक है की जब ईसामसीह का जन्म हुआ तो सबने कुछ न कुछ भेंट उन्हें दी। देवदारु का पेड़ उदास था की वह जगत के राजा को क्या उपहार दे ,उसके पास कुछ नहीं था। यह देख एक देवदूत को दया आ गयी और उसने इस पेड़ को तारों से खूब सजा कर ईसा को भेंट कर दिया। बालक ईसा इसको देख बहुत खुश हुए,तबसे यह परम्परा बनी हुई है। स्टार का इससे जुड़ने का एक कारण यह बताया जाता है की जब ईसा जन्मे थे तो एक अत्यंत चमकदार तारे ने पूर्वीय आकाश में प्रकट हो तीन ज्ञानियों का पथ प्रदर्शन किया था और तब उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला की आज किसी एक दैवीय पुरुष का जन्म हुआ है। तभी से क्रिसमस पर्व पर विविध रंग बिरंगे तारों से सजावट का चलन शुरू हो गया।
क्रिसमस का त्यौहार दरअसल प्रेम-करुणा को बांटने का त्यौहार है। ईसामसीह ने अपना सम्पूर्ण जीवन इंसानियत के लिए समर्पित कर दिया था। ऐसे करुणा-सागर,दूसरे के दुःख-दर्द से द्रवित हो जाने वाले इस महामानव का जन्मदिन समारोह हमें जरूरतमंद की मदद करना,उसकी निष्काम भाव से सेवा करना जैसे उच्च मानवीय गुणों को विकसित करने की सीख देता है। यदि हम इस त्यौहार के वास्तविक उद्देश्य को समझते हुए यह पर्व मनाएं तो न केवल पारस्परिक सौहार्द बढ़ेगा अपितु स्वस्थ समाज का भी गठन होगा। और यही हमारी भगवान ईसा मसीह को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी। आमीन !
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