प्रकाश-उत्सव है बड़ा ही अभिन्न अंग हमारा
उत्साह-उल्लास बन दौड़ता धमिनियों में सारा।
वस्तुतः हम सभी तो हैं प्रकाश के ही पुत्र
प्रकाशस्रोत से ऐसे जुड़े जैसे मणि-सूत्र।
फिर भला हम क्यों व्याकुल, विकल
संत्रस्त से अपनी मूल चेतना रहे भूल।
गहन,तमस आच्छादित रात्रि है भला कहाँ
दसों-दिशा आलोकित स्वयंप्रभा बस है यहाँ।
हम तो हैं सदा अजर, अमर प्रकाश पुंज
झूमते-विचरते श्रीहरि निकेतन गली कुंज।
No comments:
Post a Comment