Monday 20 October 2014

245 - जय-जय-जय गुरुदेव तुम्हारी






ये सहज अदा तुम्हारी
सारी आस हमारी।
रूप,रंग,खुशबू में बसी
क्या खूब तेरी ये राशि।
हर तरफ जलवों का फन
फैला अकूत मनों-मन।
प्यार के बस एक बोल पर
लूटा देता सर्वस्व हम पर।
फिर भी तेरी सुध कहाँ आती
स्वार्थवश बस जिव्हा बुलाती।
पर माफ़ कर त्रुटि हमारी
झट खेता नाव हमारी।
जय-जय-जय गुरुदेव तुम्हारी
बार-बार चरनन बलिहारी। 

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