अमृत बरसा धरा पर आज अनवरत
उजली-खिली,शरद पूर्णिमा की रात।
पायस में संचित निर्मल चन्द्र किरन
प्रातः करें फिर हम मिल जलपान।
अर्जित हो जो अब ओज, बुद्धि, बल
आओ सजाएं उससे आने वाला कल।
नयी चेतना,नयी सोच का परचम लहरा
आंदोलित कर दें अब यह सम्पूर्ण धरा।
हम अनूठे सत,चित,परमानंद के लाल
हैं जुड़े उसी परम मनोहर अमृत-नाल।
No comments:
Post a Comment