लिखता रहा हूँ गजल बस इसलिए।
घाव नासूर न बन जाए रिसते हुए।।
देख जमाने भर के रंजोगम आसपास ।
दिल ए चैन कहाँ भले लाख संभालिए।।
ऐन मौके पर भूलते हो केवल हमें।
अब कहो कैसे तुझे अपना बताएं।।
सच-सच कहें तो आफत चुप रहे तो भी।
भला ऐसे हालत साथ तेरा कैसे निभाएं।।
जुबान से कहो कुछ और दिल में कुछ रखो।
"उस्ताद" ख़ामख़याली* से तेरी खुदा बचाए।।*फ़र्ज़ी सोच
नलिनतारकेश @उस्ताद
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