बेसुधी का ऐसा आलम कि क्या कहें।
तेरी चाहत का है ये नतीजा क्या करें।।
हवाओं से आ रही है तेरे दीदार की खुशबू।
मसला है ये आंखिर सांसों में कितना भरें।।
होंठ बुदबुदाते हैं तो कभी धड़कन में बजता है।
नाम का जादू तेरे भला किस-किससे हम कहें।।
कब तलक बंद पलकों में राज ये छुपाएं।।
"उस्ताद" सच कहें तो अब तेरी जरूरत नहीं।
हमसे ज्यादा तो अब हम आपको बेचैन पाएं।।
नलिनतारकेश@उस्ताद
No comments:
Post a Comment