बिजली की कड़क थाप पर राग मेघ बजने लगे।
कार्तिक आश्विन तो सावन भादो से बरसने लगे।।
किसका दशहरा रावण वध की तो जरूरत ही ना रही।
आत्मग्लानि से गलित हो दशशीश स्वयं बिखरने लगे।।
दीपावली पर इस बार अतिथि कक्ष नूतन सिंगार दिखा। कुर्ते पाजामे तौलिए सब वहीं जब सोफे पर सूखने लगे।।
शरद पूर्णिमा की रात अमृत रस बरसता प्रत्यक्ष दिखा।पटाखे आसमां में लीजिए अभी से पुरजोर बजने लगे।।
"उस्ताद" अभी क्या है अभी तो बस ट्रेलर दिखाया जा रहा।
होगा अंजाम बुरा जो यूं ही कुदरत से छेड़छाड़ करने लगे।।
अति सुन्दर
ReplyDeleteWah wah ustad ji bahut khoob.
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