ग़ज़ल 470:
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दिलो-दिमाग के जंग लगे दरीचे खुलवा ले।
किताबों,रिसालों से अपना रिश्ता बना ले।।
काम आएगी ना ये धन-दौलत हर वक्त तेरे।
इस जिंदगी को यार जरा नेकी से जिला ले।।
पेंचोखम बड़े हैं सफर के हर कदम में।
थोड़ा ठहर के कभी नाम खुदा का ले।।
पहले ही कम ज़हर खुला है फिजाओं में।
आ अब तो जरा मोहब्बत का गीत गा ले।।
"उस्ताद" बन्दगी की ताकत तुझे पता ही नहीं।
चाहे तो एक पल में सबको नूर उसका दिखा ले।।
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