Monday 31 October 2022

ग़ज़ल:472 --- तेरे हुस्न की

तेरे हुस्न की तारीफ मैं करूं तो कैसे करूं।
पलकें झपकें जो अगर तभी तो कुछ कहूं।।

ये निगाहों की मस्ती डुबो देती है सर से पांव तक।
होश रहे यारब तब तो कलाम अपना लिख सकूं।।

रूप,रंग,अदा सभी तो है बांकी तेरी कसम से।
तू ही बता किस-किस को याद करूं किसे भूलूं।। 

देखा है जबसे बन गए हैं आशिक तेरे हम तो दिल से।
तू कबूले नहीं अगर तो बता कहाँ जाकर भला रोऊं।।

देर है तो देर ही सही हम तो अड़े बैठे हैं दर पर तेरे।
तू ठोक-बजा इत्मीनान से परख क्या "उस्ताद" हूं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 30 October 2022

ग़ज़ल 471: हुआ क्या?

दो और दो का जोड़ पढ़कर भी यारा हुआ क्या?
सफर इससे जिंदगी का कहो आसां हुआ क्या?

दावे तो बहुत गजब के सफेदपोशों ने अक्सर किए। 
असल थोड़ा-बहुत भी रंग बेहतर हमारा हुआ क्या? 

तुमसे किसने कहा था नजदीक हमारे आने को इतना।
आग और पानी का कभी संग साथ चलना हुआ क्या? 

होठों पर हंसी दिल में जख्म लिए चलते रहे ताउम्र हम।कभी इस बात का गुमान भी किसी को जरा  हुआ क्या? 

लिखे भला क्यों रूहानी नूर पर "उस्ताद" कलाम अपना। सूरज को चिराग दिखाने से मकसद हल भला हुआ क्या?

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 23 October 2022

दीपावली की बधाई

दीपावली की सभी को बहुत बहुत बधाई 
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प्रकाश पर्व करे दूर जीवन से,अमावस के घोर-घने अंधेरे।
जगमग दीप ज्योत्सना नित्य बिखेरे,उर में उजाले अपने।।

आशा-विश्वास,उमंग कि हर श्वास बहती पुनीत त्रिवेणी रहे। 
हों निर्मल,सहज-सरल,जिसमें मन-प्राण लगा डुबकी हमारे।। 

विनय,विवेक युक्त श्री गणेश मन-मस्तिष्क की लगाम रहें थामें। 
श्री लक्ष्मी उल्लासित हो फिर क्यों न त्वरित वेग घर-द्वार पधारें।
 
दिन में होली,रात दिवाली यूँ हंसते-गाते बीते जीवन हम सबके। 
झूले में परस्पर अनुराग,प्रेम के आओ हम सब मिलकर झूलें।।

मनो-मालिन्य,कटुता,राग-द्वेष के द्वन्द्व-फंद अब सब छोड़ें। 
गले लगा कर एक दूजे को,मानव-जन्म ये सफल बना लें।।

नलिनतारकेश

Wednesday 19 October 2022

ग़ज़ल:470

ग़ज़ल 470:
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दिलो-दिमाग के जंग लगे दरीचे खुलवा ले। 
किताबों,रिसालों से अपना रिश्ता बना ले।।

काम आएगी ना ये धन-दौलत हर वक्त तेरे।
इस जिंदगी को यार जरा नेकी से जिला ले।।

पेंचोखम बड़े हैं सफर के हर कदम में।
थोड़ा ठहर के कभी नाम खुदा का ले।।

पहले ही कम ज़हर खुला है फिजाओं में।
आ अब तो जरा मोहब्बत का गीत गा ले।।

"उस्ताद" बन्दगी की ताकत तुझे पता ही नहीं।
चाहे तो एक पल में सबको नूर उसका दिखा ले।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday 17 October 2022

469:ग़ज़ल

नजरें उनसे क्या मिलीं,नसीब अपने संवरने लगे।
चले फिर जिस राह हम,शोख गुल महकने लगे।।

चले जो हाथों में हाथ लिए,मील के पत्थर छूटने पीछे लगे। 
वजूद अपने अलग जो थे जाने कब,खुशगवार होने लगे।।

एक दौर था जमाने को जब,ऐतराज़ खूब रहा यारी पर हमारी।
मगर धीरे-धीरे मोहब्बत में हमारी पत्थर-दिल भी पिघलने लगे।।

सजाया आशियाना तिनके जुटा,गहरे तूफानों में हमने कैसे।
देख हौसला ए हुनर हमारा,सब दांतो तले उंगलियां दबाने लगे।। 

अपराजिता तूली ने भरे,अनिर्वाण रंग नम्रता से घोलकर। ललिता श्रीमुख से दिव्य स्वर,अलख निरंजन गूंजने लगे।।

उमर अस्सी-पिच्चहतर,साथ साढे चार दशकों का शबाब यूँ चढ़ा।
कभी नोक-झोंक,कभी हंसी-ठठ्ठा तो "उस्ताद" कभी तौबा- तौबा करने लगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday 9 October 2022

कविता बरसात की

बिजली की कड़क थाप पर राग मेघ बजने लगे। 
कार्तिक आश्विन तो सावन भादो से बरसने लगे।।

किसका दशहरा रावण वध की तो जरूरत ही ना रही।
आत्मग्लानि से गलित हो दशशीश स्वयं बिखरने लगे।।

दीपावली पर इस बार अतिथि कक्ष नूतन सिंगार दिखा। कुर्ते पाजामे तौलिए सब वहीं जब सोफे पर सूखने लगे।।

शरद पूर्णिमा की रात अमृत रस बरसता प्रत्यक्ष दिखा।पटाखे आसमां में लीजिए अभी से पुरजोर बजने लगे।।

"उस्ताद" अभी क्या है अभी तो बस ट्रेलर दिखाया जा रहा। 
होगा अंजाम बुरा जो यूं ही कुदरत से छेड़छाड़ करने लगे।।

नलिनतारकेश "उस्ताद"

कविता

कितनी-कितनी अभिलाषाओं को,नित्य सींचते रहते हम।लेकिन जो एक भी पूरी न हो,बस अश्रु बहाते रहते हम।।

जीवन है यह क्षणभंगुर,प्रवचन सबको सदा ही देते हम। लेकिन धन-दौलत,सुख-सुविधाएं,नित्य जोड़ते रहते हम।

वेद,पुराण कंठस्थ सभी,सबको यह जतलाते रहते हम।
लेकिन वाणी से सदा ही अपनी,गरल टपकाते रहते हम।।

प्रभु ने भेजा था सेवा को हमको,उसको भुला बैठे हम। लेकिन उदर भरा रहे बस,सदा इसी प्रयत्न में रहते हम।।

नलिनतारकेश