गजल संख्या : 400
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ऐसा क्या हमसे गुनाह हुआ है।
तूने जो हमसे किनारा किया है।।
चाहने की कसमें तो बहुत खाईं थी तूने।
बता फिर भला क्यों ऐसा सिला दिया है।।
सदाएं* सुनने को तेरी तरसते हैं अब तो। *आवाज
वक्त ने जाने ये कब का बदला लिया है।।
अज़िय्यत* तुझे क्या पता जो हमें हो रही।*यातना
तूने मुस्कुरा के तो बस ना ही कहा है।।
तेरी रजा जो भी हो फैसला आखिर तेरा।
वजूद अब तेरा "उस्ताद" पैवस्त* हो गया है।।
*अंदर धंसकर अच्छे से बैठना।
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