लीजिए दो दिन हुए भी नहीं जलजले से निकले।
जनाब बौछार की फिर से फरमाइश करने लगे।।
गर्मी,सर्दी,बरसात ये तो आयेंगी जिंदगी में आपकी।
डरते भला क्यों हैं फिर आप इम्तहानों से इन हल्के।।
दर्द के जाम हलक से उतरने पर भर देते हैं खुशी।
सीखिए जिन्दगी में सबर और समझौते भी करने।।
कारखानों की तरह नहीं हांकिए हसीन जिंदगी को।
कठपुतली बनाके क्यों मासूमियत हैं इसकी छीनते।।
"उस्ताद" छोड़ दिया कीजिए कुछ तो परवरदिगार पर भी।
वैसे कहिए फैसले आपके अब तलक कौन से खरे उतरे।।
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