Tuesday 28 June 2016

साईं तेरे रूप की कैसे चर्चा करूँ





साईं तेरे रूप की कैसे चर्चा करूँ 
कुछ पल्ले पड़े तो भला मैं कहूं। 
कभी तू इस रूप में तो कभी इस रूप में 
उलझन में हूँ देख सब तेरे रूप में। 
मेरी दृष्टि संकुचित देख पाती नहीं 
वर्ना तू तो उपलब्ध है हर कहीं। 
अब भिखारी हो या अरबपति
साधक कोई या हो फिर व्याभिचारी। 
मैं तो भेद बुद्धि से सभी को तौलता 
पतित,पूज्य खानों में उन्हें हूँ बांटता। 
पर तू तो हर जन को गले लगाता 
सींच प्यार उन्हें अपनाता। 
सब देख के तेरी ऐसी लीला 
सच कहते तुझको "अलबेला"।
  

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