साईं आखिर आज तुम आ ही गए घर में
अपने मोहक,भव्यतम रूप श्रृंगार में।
स्वर्ण सिहांसन आसीन,दीप्त काँन्ति में
निर्मल कृपा दृष्टि बिखेरते कण-कण में।
तो सोचो भला क्यों न मैं लगूं इतराने
तुम जो मिल गए हो परम सौभाग्य से।
त्तुम लोकेश से तो कभी विचरते हो सोमेश से
यानि कभी ब्रम्हान्ड नायक तो कभी फकीर से।
श्रद्धा और सबूरी बस मात्र दो मन्त्र तुम्हारे
इन्हें साध ले कोई तो कटें भाव बंधन सारे।
हर तरफ बिखरे हैं जलवे बस एक तुम्हारे
लिखूं क्या,कहूं क्या-क्या,समझ न आये।
जो हो,ये तय है जब तुम आये घर-द्वार हमारे
मिटेंगे रोग व्याधि सब,होंगे साकार स्वप्न सारे।
यह कविता दो साईं भक्त भाईयों के द्वारा भेट स्वरुप भव्य साईं छवि ,कैलेंडर प्राप्ति पश्चात साईं ने लिखा दी जो अब मढ़वा कर घर में विरजमान है।
No comments:
Post a Comment