योग है परम आधार जगत का
योग ही मूल मन्त्र हम जीवों का।
आसन,धारणा,ध्यान,और नियम का
प्रत्याहार,प्राणायाम,यम,समाधि का।
साँस-साँस लयबद्ध क्रमिक गति का
नामकरण है दिव्य अष्टांग योग का।
मूलाधार से आज्ञा चक्र तक का
भेदन होता है जब षट्चक्रों का।
सहस्त्रार जब-जब जाता प्राण जीव का
दर्शन पाता निर्विकार परम पुरुष का।
तेजोमय अपना ही रूप निरखता
एकाकार जो होता साकार ब्रह्म का।
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