Sunday 26 June 2016

नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार





नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार
पर फिर भी व्यथा सताती बारम्बार। 
हाँ ये तो है,नाम तुम्हारा अक्सर 
भाव-विहीन रट्टू तोते सा रहता है। 
क्या इस कारण से साईं मुझको 
यूँ ही ये दर्द बन रहता है ?
वैसे तो ये दर्द रहे भी तो क्या है ?
सुख-दुःख तो बस एक खेल जरा है। 
पर ये अनुभूति जो दुर्लभ है 
दिल में गहरे उतरे तो ही सही मजा है। 
(और) ये सब देने वाला भी तो साईं 
तू ही एक सरकार बड़ा है। 
लेकिन फिर भी मैं वंचित हूँ इससे 
समझ बात न ये आती है। 
तो ऐसे में मेरी विनती ये तुमसे है 
या तो तू दुःख ये सब हर ले। 
या कि फिर मैं इससे उबर सकूँ 
ऐसी शक्ति मुझको दे दे। 

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