कुछ नादानियां तो हमारी जग जाहिर हो चुकीं।
मगर बहुत अभी भी हमने छुपाके हैं रखी हुई।।
यार वैसे सच कहूं तो तुम यकीन कर भी लेना।
नासमझी कुछ ऐसी हैं जो हमसे भी छुपी रहीं।।
तेरी समझदारी पर है शक-ओ-शुब्हा तो नहीं हमें।
तभी उम्मीद है ये राजे-बात तेरे लिए कतई नहीं।।
दिल खोलकर रखना अच्छा है ताउम्र दोस्ती को।
ये अलग बात है आज कद्र नहीं ऐसे जज़्बात की।।
सफ़र में चलते-चलते अकेले,थक गए हैं हम बुरी तरह।
"उस्ताद" चलो देखें मगर तकदीर में क्या कुछ है लिखी।।
नलिन तारकेश @उस्ताद