जहाँ भी रहे वहीं के रंग में ढल गए।
आसां जिन्दगी यूँ बसर करते चले।।
दिन में तो मुठ्ठी भर लोग दिखे यहाँ।
शाम पर बर्रों से मधुशाला पर जुटे।।
उम्र का अहसास कोई तो रखता नहीं।
झुर्री भरे चेहरों में भी मुस्कुराहट दिखे।।
शहर का जादू तो सर चढ़कर बोल रहा।
पलक भी हमारी झपकने से इंकार करे।।
बाहर निकलते ही कड़ी धूप मिल रही।
"उस्ताद" मस्ती में मगर हम डोलते रहे।।
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