सोचा था तेरी जुल्फों की छांव में,उम्र गुजार लूँगा।
इस तरह रूठी हुई तकदीर को,अपनी संवार लूँगा।।
सोचने से मगर,होता है कहाँ कुछ भी यहाँ यारब।
चलो देर ही सही,चढ़ी हुई खुमारी भी उतार लूँगा।।
रास्ते हो जाएं जुदा?जब एक मोड़ पर पहुंचकर।
चाहते न चाहते,बेमन तेरी,जुदाई स्वीकार लूँगा।।
तूफान आता तो है,जिंदगी में हरेक की एक बार।
चलो तिनके-तिनके घौंसले के,मैं भी बुहार लूँगा।।
हर फैसला,फैसला है गलत सही कुछ भी,मान के चलो।
"उस्ताद" बमुश्किल ही सही,गम ये अपना बिसार लूँगा।।
नलिनतारकेश @उस्ताद
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