भर रंग पिचकारी क्यों मार रहे हो श्याम
मैं तो रंग में रंग चुकी तेरे ही एक श्याम।
अब सब छोड़ लोक-लाज,आयी तेरे पास
बाहों में भर ले मुझे, एक यही अब आस।
जहाँ देखती खड़ा वहीँ तू,रोके मेरी राह
पकडूँ तो छल कर,बेगि छुड़ावत बांह।
दिनभर भटक-भटक कर थक जाते हैं पाँव
जाने कब आओगे बसने मेरे दिल की ठाँव।
"नलिन" नयन व्याकुल हैं कबसे,ओ निष्ठुर दिलदार
देर करो न पल भर अब तो, सुन लो करून पुकार।
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