एक दिन वो रोज़ की तरह सुबह पार्क में खेलने जा रहा था,दरअसल उसकी गर्मी की छुट्टियां चल रहीं थीं सो सब बच्चे वहीं 5 बजे खेलने के लिए मिलते थे।आज वो थोड़ा जल्दी पार्क पहुँच गया था तो ऐसे ही चहल-कदमी कर रहा था तो झाड़ी में एक छोटे काले पपी को कराहते देखा। उसने आस-पास देखा पपी की मम्मी उसे कहीं नहीं दिखाई दी. उसका दिल नहीं माना सो उसने बड़े प्यार से उसे बाहर निकाला और देखा की उसकी टांग में चोट लगी है। उसे बड़ा दर्द हुआ। इतने में उसके दोस्त भी आ गए। सब जानते थे की राजू को डॉग बहुत अच्छे लगते हैं तो सब उससे जोर देकर कहने लगे की इसे वो अपने ही घर ले जाये। उसका मन भी यही था पर पापा … फिर उसने सोचा की जब तक ये ठीक नहीं हो जाता तब तक के लिए पापा से कहेगा की वो इसे रहने दें। यही सोच और निर्णय ले वो उसे घर ले आया। शाम पापा आये तो पता चला की उनका प्रमोशन हो गया है। आज तो पापा बहुत खुश थे सो घर के लिए बहुत मिठाई वगैरा ले कर आये थे। उन्होंने जब ये सारी बात सुनी तो न जाने कैसे शायद ख़ुशी में खुद ही राजू से डॉगी को घर में रखने की इजाजत दे दी।
राजू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी तो मन की इच्छा पूरी हो गयी। अब उसने अपने डॉगी को सबसे पहले प्यार सा नाम दिया,"टाइगर" जो उसने पहले से सोचा हुआ था,और उसकी देखभाल में लग गया। जल्दी ही राजू की देखभाल रंग लायी और टाइगर न केवल ठीक हो गया बल्कि उससे बहुत घुल-मिल गया। टाइगर बहुत एक्टिव और समझदार था,शायद एक अच्छी ब्रीड का था। अब तो राजू क्या उसके दोस्तों की भी मोंज-मस्ती को पंख लग गये। रोज सुबह-शाम जब भी खेलने की बात आती बिना टाइगर के कोई कुछ सोच नहीं सकता था।
ऐसे ही एक दिन जब सारे दोस्त टाइगर के साथ पिकनिक मनाने घर से थोड़ा दूर एक बड़े पार्क में गए। वहां बॉल खेलते हुए टाइगर भी बॉल पकड़ कर ला रहा था। बल्कि वह तो कई बच्चो से ज्यादा फुर्ती से दौड़ लगाता और तेजी से पकड़ कर राजू को देता। इसी तरह खेल चल रहा था। एक बार बॉल झाडी के अंदर फँस गयी तो टाइगर लेने दौड़ा मगर वापस न आकर वहीं भोंक रहा था। जल्दी ही दोस्तों ने उस जगह को नजदीक से देखा तो उन्हें वहां एक लेडीज पर्स भी दिखा। पर्स में पैसे तो नहीं थे मगर कुछ महत्वपूर्ण डाक्यूमेंट्स वा अन्य कुछ कागज़ थे। दोस्त समझ गए की ये किसी चोर ने लेडीज पर्स छीन कर उसमें से असली माल याने कैश उड़ा लिया है और पर्स यहाँ डाल दिया है। राजू और उसके मित्रों ने फिर घर आकर ये किस्सा सुनाया तो सबने पर्स को थाने में जमा करने की राय दी। सुधीर अंकल जो राजू के दोस्त के पापा थे और पुलिस में थे उन्हें ही ये काम सौंप दिया गया। राजू के मुँह से टाइगर की ये सारी प्रशंसा सुन कर अब तो राजू के पापा भी उसे बहुत अच्छा मानने लगे थे। ये देख राजू को अपने टाइगर पर गर्व करने का एक और मौका मिल गया और अब दोस्तों में ही नहीं पूरे मोहल्ले में टाइगर की लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी थी।
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