देख रहा हूँ एक वक्त से दपॆन मगर।
समझ ना आए है ये किसका बदन मगर।।
हैरान हूँ सांसों के इस अन्दाज पर।
रुक कर भी चल रहा है ये जीवन मगर।।
जिनका इंतजार है वो आयेंगे यदि अगर।
राह पर मेरी हैं बरसे कहां घटा सावन मगर।।
बखिया उधेड़ कर वो अक्सर सबके सामने।
देख मुझे करते हैं फौरन ही तुरपन मगर।।
मुफलिसी भी होती मुबारक अमीरी की तरह।
"उस्ताद" है कहाँ शेष नूर खंजन नयन मगर।।
bahoot khoob !! prerak rachana !!
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