श्रीगुरुचरण रज की,हम सबको ही तो दरकार है।
बगैर उसके कहाँ,जीवन की नैया अपनी पार है।।
गहन-तिमिर,अज्ञान-मोह का छाया हुआ है।
श्वास-श्वास गुरु नाम ही,बस एक पतवार है।।
हाथ को भी हाथ सूझता,यहाँ कुछ भी नहीं है।
एक है बस वही जो,हम सबका पालनहार है।।
हम सभी यहाँ माया के वशीभूत हो,कर्म कर रहे हैं।
करुणानिधि है बस वही,जो करता नित्य उपकार है।।
सहज,सरल हो यदि करता,हृदय उसकी याद है।
कहो क्या है भला असंभव,जब वही जगताधार है।।
निश्चल प्रेम की बस एक पुकार ही,उसे दरकार है।
दौड़ते आ जाता नंगे पांव,रहता कहाँ निराकार है।।
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