अक्सर बहुत परेशान है रहता पता नहीं क्यों।
खुद पर यकीन नहीं कर पाता पता नहीं क्यों।।
माल-असबाब किसी की भी तो कमी नहीं है।
जाने फिर हवस बनाए रखता पता नहीं क्यों।।
दुनिया तो चलेगी धूप-छांव के साथ-साथ यूँ ही।
पते की ये बात मगर वो समझता पता नहीं क्यों।।
सुनहला मुस्तकबिल गढ़ती हैं दर्द भरी राहें ही।
ये जानकर भी हौंसला डिगाता पता नहीं क्यों।।
हर दिन नया है आफताब* जान लीजिए "उस्ताद"।*सूर्य
बीती रातों के अश्क ए मोती पिरोता,पता नहीं क्यों।।
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