Friday 10 February 2023

फागुनी बयार की मस्ती

फागुनी बयार की मस्ती
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साहित्य,संगीत,कला की सात्विक त्रिवेणी जब उर बहती।
सुधारस में अपने गहरे डूबा हमें अनजान लोक ले जाती।
तन-मन की सुध-बुध भुला तब लगती अनोखी समाधि।। 

अकल्पनीय मन-वीणा के तारों की झंकार मधुर गूंजती। रंग-बिरंगी तितलियों सी अधर अप्रतिम मुस्कान खिलती।
हरअंग शांत होता पर धड़कनें तीव्र गति थिरकने लगती।।

ऋतम्भरा पहनाती जब फूलों की माला हंसारुढ सरस्वती। भू से नील-गगन पार स्वर्ग तक अद्भुत कांति जगमगाती। 
नवसृजन तूलिका सहज पाषाण हृदय-घट भरती रवानी।।

कौतुक रचाने राधा-कृष्ण फिर गोप-गोपी संग बना टोली।
नाचते,गाते,झूमते मिलकर खेलते रंगीन अलौकिक होली। फागुनी बयार तब क्यों न अबीर-गुलाल मल इतरा बहती।

नलिनतारकेश

1 comment:

  1. होली का सुंदर वर्णन

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