जनाब देखिए मौसम कितना आशिकाना हो गया।
खोलिए जरा लब भला अब क्या बहाना हो गया।।
#Gazal
फुर्सत में आएंगे तब करेंगे गुफ्तगू आपसे।
ये तो मगर रोज का एक फसाना हो गया।।
होश किसे रहा जब से खोले हैं गेसू बादलों ने।
सूखे दरख़्तों का दिल झूमके परवाना हो गया।।
टिन की छत आज जब टप-टप टपकता है पानी।
दिलाए याद वो लम्हे जिन्हें बीते जमाना हो गया।।
डायरी के पन्ने इत्र ए गुलाब जिन पर झिड़का था कभी।
"उस्ताद" सांसों के ब्याज से नायाब खजाना हो गया।।
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