तेरे नाम के सिवा आता नहीं कुछ जुबां पर मेरी।
झूठ नहीं सच ही कह रहा हूँ कसम है मुझे तेरी।।
रोता बिलखता हूँ रात दिन चाहत मैं बस एक तेरी।
सिवा इसके इबादत मुझे कुछ जुदा आती ही नहीं।।
गुल खिले हैं गुलशन में परिंदे भी चहक रहे हैं हर तरफ।
जगह-जगह बस एक तेरी ही आवाज गूंजती मिल रही।।
बेखौफ चहल-कदमी कर रही है सर्द हवाएं जरा देखिए।
फटी गुदड़ी जी रहा गरीब इनायते करम सिवा कुछ नहीं।।
अब आ भी जाओ "आफताब"* तुम मेरे जहां भी हो छुपे हुए।*सूर्य/आत्मरूप ईश्वर
भर सकते हो तुम्हीं शादाब* "उस्ताद" ए दिल एक तुम्हीं।।*तर ओ ताज़गी
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