सुर सधे न सधे गुनगुनाना चाहिए।
खुद से भी हमें बतियाना चाहिए।।
हर कदम दुश्वारियां आती रहेंगी यूँ तो।
छोड़ सभी फिक्र खिलखिलाना चाहिए।।
चांद आसमां का कहाँ उतरता है जमीं पर।
भरके परात पानी खुद को बहलाना चाहिए।।
अच्छा है हार के भी एतबारे तकदीर रखना।
पुरजोर तकदीर को मगर आजमाना चाहिए।।
खैरखाह* होने से कतराते हैं लोग अब सभी। *हितैषी
रिवाज मगर आदिमयत का बचाना चाहिए।।
आलिम-फाजिल* हो माना "उस्ताद" तुम। *प्रकांड पंडित
कभी बन के थोड़ा-बच्चा गपियाना चाहिए।।
@नलिनतारकेश
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