Wednesday 26 May 2021

जीवनपथ पर कर्म और निष्कामता 卐卐ॐ卐卐ॐ卐卐ॐ卐卐ॐ卐卐

जीवनपथ पर कर्म और निष्कामता
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क्या-कहें कैसे कहें,सब खुद को मिले अपने चरित्र का ही निर्वाह कर रहे।
भला-बुरा,जैसा भी मिला बस,उसे हम तो रो या हँस के  निभा रहे।।

डोर तो है सब प्रभु के हाथ में,वही प्रत्येक श्वास सबको नचा रहे।
बनके अभिनेता जाने क्यों हम,खुद पर ही फिर बार-बार इतरा रहे।

जो मांगते रहे,प्रभु से प्रार्थना कर बार-बार,वही निभाने को हमको मिला। 
अब हर पात्र में गुण-दोष तो होगा,फिर भला हम क्यों उससे कतरा रहे।।

"एकनिष्ठ"जो भी विश्वास पूर्णता से,मात्र हरि इच्छा पर ही करते रहे।
वही जीव,जीवन पर्यंत हरि-कृपा का,पग-पग पर अनुभव करते रहे।।

वल्गा*,विवेक-बुद्धि की देने को कर्मरथ आरूढ जीव को हरि तत्पर रहे।*लगाम
देह-बुद्धि-अहं से उठकर परे,जो कोई  ईश को कण-कण देखते रहे।।

@नलिनतारकेश

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