अनुपम मनोहर जो देख ली।
रूपराशि अपने युगल सरकार की।
होश में रही कहाँ ए सखी।
जो वर्णन करूं मैं मन्दमति।।
लावण्य ऐसा गजब का दिखा।
जैसे मेघ मध्य बिजली है कौंधती।
श्रवणरन्ध्र बस अब तलक।
नूपुर ध्वनि छन-छन है बोलती।।
न हाथ जुड़ सके प्रणाम को।
न शीश चरणों में नत हुआ।
बांकी छवि "नलिन" नैन की।
उर आ बसी ये क्या कम हुआ।।
ये स्वप्न था या हकीकत।
कौन कैसे पड़ताल करे।
हां धड़कन जो चल रही तेज-तेज।
शायद वही कुछ बखान करे।।
नलिन @तारकेश
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