नकाब उठा कर जो चेहरा दिखाया उसने। तसव्वुर को हकीकत से यूं मिलाया उसने।।
नासमझ मुझे तो बस जिस्म की समझ थी मगर।
नूर ए रूहानी आंखों से पिलाया उसने।।
तपते रेगिस्तान में बदहवास सा पड़ा था। नेमत से अपनी मुझे आकर जिलाया उसने।।
दर्द,तकलीफ ठहर कर जब-जब नसीब बन गया।
रोते हुए को बना जिंदादिल हंसाया उसने।।
तकदीर जो खुद की ही न पढ़ सका कभी अपनी।
लकीरों को सबकी फिर उससे बंचवाया उसने।।
जिंदगी के कदम जब कभी बने गर्दिशे सफर। पेंचोखम जुल्फ को"उस्ताद"सुलझाया उसने।।
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