राम तुम हो मेरे अंतर्मन में
मेरे क्या सबके ही उर में।
फिर भी लेकिन ये क्यों होता
दिखते नहीं कभी तुम मुझ में।
यदि हो रहते,नहीं हो दिखते
तो भी ऐसी कोई बात नहीं ।
पर ये तो सोचो,जब तुम बसते
फिर क्यों रहते पाप ह्रदय में।
जो भी हो कुछ तो है गड़बड़
जिसका करो अब इलाज हरे।
वरना तो मेरा क्या,बेशर्म मै ठहरा
होगा प्यारे!तेरा ही उपहास जगत में।
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