Thursday 5 September 2024

६८९: ग़ज़ल: पिलाई थी जो उसने प्यार से खुमारी उसकी ही बाकी है

पिलाई थी जो उसने प्यार से खुमारी उसकी ही बाकी है।
घर पहुंच के भी याद वहीं की जेहन में आकर सताती है।।

हरियाली का गलीचा कुदरत ने बिछाया था हमारे लिए।
उमस भरे मौसम में यहां बस वही याद हमें जिलाती है।।

कसम से क्या खूबसूरत मंजर था वहां का क्या बयां करें।
जो लिखने लगे‌ हैं तो कलम रुकने का नाम नहीं लेती है।।

नीले आसमां में उड़ रही थी पतंगें हमारे-उसके नाम की।
वो डोर ही यार हमें वहीं बार-बार खींचकर ले जा रही है।।

रंजोगम तो बहुत हैं‌ इस रंगीन दुनिया‌ की असल हकीकत में।
"उस्ताद" ये इनायत है खुदा की जो हमें खुशहाल रखती है।।
नलिन "उस्ताद"

Wednesday 4 September 2024

६८८: ग़ज़ल: हम जी लेते हैं हर हाल में

हम जी लेते हैं हर हाल में रोने-गाने का सवाल ही नहीं।
हां  दर्द दूसरों के हम लिखते हैं कलाम में कहीं न कहीं।।

जद्दोजहद के संग बरसना लाजमी है हर‌ गाम जिंदगी में।
बस उसे तराश कर हीरा बनाने की‌ तेरी कवायद‌ है सही।।

वो मगरूर अगर है तो कल खुलेगी आंख खुद ब खुद से।
कब और कैसे सिखानी है पता है कुदरत को उसे मनाही।।

होशोहवास में वसियत दिल की जब कर दी तेरे नाम पर।
अब कहां इस जनम मिटेगी अंगूठे के निशान की स्याही।।

"उस्ताद" ये खुदा जाने अभी कैसे-कैसे दिन देखने हैं हमने।
यूं बड़ी है उसकी इनायत जो आज भी बेहतरीन कट रही।।

नलिन "उस्ताद" 

Tuesday 3 September 2024

687: Gazal : वफ़ा नहीं भी तो कम से कम ताल्लुकात बनाए रखिए

वफ़ा नहीं भी तो कम से कम ताल्लुकात बनाए रखिए।
कौन जाने कल आपको सहारे की जरूरत हो जानिए।।

माना किसी भी काम के नहीं रहे हम अब आपके लिए।
मगर कहे कौन भला दावे से हम न आपके काम आएं।।

कश्तियां हैं डूब जाती और पार करा देते हैं पत्थर भी।
ये दुनिया बड़ी अजीब-ओ-ग़रीब है सच मान लीजिए।।

हम गए तो थे उनकी महफिल में बड़े सज-संवर कर।
चुपचाप मगर वहां से जनाब,गैर संग रुखसत हो गए।।

"उस्ताद" ये तुम्हारा हक है हमें चाहो या कि न चाहो।
वैसे भी हमें प्यार में किसी का अहसान नहीं चाहिए।।

नलिन "उस्ताद"