वरना तो अपने दिन, यूं ही फाकों में थे कट रहे।।
सोचा कि चलो कुछ देर सुस्ता लें कुछ देर ठहर कर।
मगर कहां नसीब में अपने अब दरख़्त थे बचे हुए।।
कसम से तुम जो भी हो कर रहे ये अच्छा नहीं है।
कलम छोड़ कुल्हाड़ी जो हाथ में थाम चलने लगे।।
मोबाइल चलाने में ही सारा वक्त खर्च कर दिया।
अब नसीब पर क्यों बेवजह इल्जाम लगे थोपने।।
हर शख्स यहां "उस्ताद" तेरा दिवाना बताता है खुद को।
ये अलग बात है कि परवाने सा जुनूं लिए कुछ ही दिखे।।
नलिन "उस्ताद"
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