दुखड़ा लेकर गई भी कहां सुनाने किस ख़तीब* से।*मौलवी
आप ही जलकर हो गई वो राख जिसके करीब से।।
करवा रहा हूं प्यार का इज़हार नक़ीब* से।
*डुग्गी पीटने वाला
सुना है कि वो बिफर गया है मेरे रक़ीब से।।
तल्ख मौसम के चलते स्याही कलम की जो सूखी थी। उम्मीद है पुरजोर बहने लगेगी फिर दिल के करीब से।।
ये दिल के घाव भरते नहीं कि फिर लगते हैं रिसने।
सो सोच रहा करवा ही लूं इलाज लगकर तबीब* से।।*डाक्टर
हर एक से होती है गुस्ताखियां चाहते न चाहते भी।
रूठ कर भला कोई कब तक बैठे अपने हबीब* से।।*प्रेमी
ये काली आंधियों के बादल छत पर गड़गड़ा रहे हैं।
हुज़ूर जाकर सुनिए कुछ शेर "उस्ताद" ए हबीब से।।
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