बनाओ ना बतिया,अब तो झूठी श्याम तुम हमसे।
सच-सच बोलो,कौन संग खेलन गए होली चुपके।।
रंग अबीर,गुलाल गलियन जब,मोड़-मोड़ पर बरसे।
तेरे तनिक दीदार को हम तो,दिन भर रहे तरसते।।
सदा रहा है फितरत में तेरी,ना आना वादा करके।
जाने-बूझे फिर भी क्यों हम,आ जाते झांसे में तेरे।।
भई उमंग शिथिल तन-मन की,हम तो रहे बस प्यासे।
कब सुधि लोगे नटवर-नागर,जो सुधरें करम हमारे।।
ऐसी प्रीत निभाओगे तुम तो,फिर हमको कौन उबारे।
खिले हुए थे जो"नलिन"सरोवर उर में वो हैं मुरझाते।।
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