सबके सामने नंगा सच जो आ गया है।
ताश के पत्ते की मानिंद वो कांप रहा है।।
रिश्वतखोरों ने धूल में दबाईं थीं जो फाइलें सारी।
बरफ पिघली तो नजारा अब सब साफ हुआ है।।
कहने को क्या है उसके पास कहो सफाई में।
हर जगह रंगा हाथ खूं से जब दिखने लगा है।।
गर्त में यूं ही नहीं धंसते जा रहे हो बेवजह तुम।
देर ही सही इंसाफ ने कच्चा चिट्ठा तो खोला है।।
धर्म,जाति,मजहब से कब तक बरगलाते रहोगे यारब।
फलक पर "उस्ताद" अब आफताबे रंग चढ़ा जुदा है।।
No comments:
Post a Comment