नवल वसंत ऋतुराज का प्रकृति प्रिया से मिलन हो गया।
दसों दिशाओं मदिर,रमणीय मधुमास देखो है छा गया।।
हर अंग-अंग प्रकृति का शोख कमनीय हो गया।
कुम्हलाये हर गात में नव रस का संचार हो गया।।
धरा,सलिल,अम्बर,समीर कौन भला जो वंचित रह गया।
चेतन-अचेतन जगत सारा प्रफुल्ल चित्त हो महक गया।।
वन-उपवन,शैल.सरिता हर कोई कृत-कृत्य हो गया।
पशु-पंछी,जीव-जलचर सब पर नशा अज़ब हो गया।।
प्रीत-पीयूष का उल्लास तन-मन वासंती रंग गया।
इन्द्रधनुष सा रंगीला, मन "नलिन" उमंगित हो गया।।
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