Wednesday 29 July 2015

333 - दो नावों में पैर से अब तो भला तौबा करो



हौसले से डटे रहो या नसीब पे यकीं करो
दो नावों में पैर से अब तो भला तौबा करो।

ये कौन हैं शान में पढ़ रहे कसीदे उनके जी भर
भूखे-प्यासे मर रहे,कुछ उनका भी जिक्र करो।

हर तरफ हादसों का दौर कुछ ऐसा चल रहा
खुद पर यकीं  भी भला अब कब तक करो।

बहुत दूर निकल आये सुकून की तलाश में हम सभी
"उस्ताद" रास्ते पहचान कर अब तो कदम चला करो।


332 - भारत कलाम





सरल-सहज,मोहक,निर्मल व्यक्तित्व तुम्हारा
धरा उदास आज,बिछुड़ा जबसे साथ तुम्हारा। 

करें परिश्रम हम जी-तोड़ से,आँखों में हो सपना न्यारा
भारत बने विश्व-गुरु पुनः से,यह था स्वप्न तुम्हारा। 

धर्म-जाति की संकीर्ण सोच से,सदा किया किनारा 
मानव का देवत्व उभारें,बस एक था लक्ष्य तुम्हारा।

ज्ञान-विज्ञान रहा अप्रतिम,बुद्धि-लाघव तुम्हारा 
बाल-समान बड़ा निष्कपट,कोमल ह्रदय तुम्हारा।

"भारत-रत्न"अब्दुल कलाम,सब वंदन करें तुम्हारा
सम्पूर्ण विश्व में सदा रहेगा,चिरंतर नाम तुम्हारा। 









Monday 27 July 2015

331 - राम - अब तो सुन लो पुकार



 राम - अब तो सुन लो पुकार 
मुझको लो तुम उबार। 
मंझधार में फँसी नौका 
मिले कहाँ कोई खेवैया। 
सब आस अब तुम पर टिकी है 
साँस की हर लय तुमसे जुडी है। 
गज की पुकार पर 
कहाँ देखे अपने पाँव के छाले। 
बाल प्रह्लाद के लिए भी 
नरसिंह अवतार लिए। 
निमिष भर में तुमने प्रभु 
भक्त के सब कष्ट हरे। 
ऐसे ही मेरे लिए भी
कुछ तो तुम उपकार करो। 
अपनी कृपा का जरा शीश पर 
वरदहस्त धरते चलो। 
मैं अनाथ,तुम नाथ बनो 
मृगतृष्णा भरे पावौं को 
शीतल,सघन नेह भरा 
अमृत-विश्राम दो।  
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Thursday 23 July 2015

330 - राम - कह तो दो तुम इतना



राम - कह तो दो तुम इतना
की तुम मेरे बस अपने हो।

मेरे ह्रदय सरोवर में तुम
"नलिन-नलिन"से खिलते हो।

जान भी पाऊँ,भेद को ऐसे
नयन-अंधता दूर भगाओ।

तुम मेरे बीएस अपने हो
ऐसा दृढ विश्वास जगाओ।

माया जनित विश्व प्रपंच से
मेरे प्रभु श्री राम बचाओ।
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Wednesday 22 July 2015

329 - राम -कृपानिधान




राम -कृपानिधान 
तुम जगत आधार। 
कब सुनोगे व्याकुल पुकार 
विकल तो  हुए 
मेरे तन,मन,प्राण।
हर छन ,हर पल काटता
बनाता मुझे बेहाल। 
किंकर्तव्यविमूढ़ आज 
कैसे करूँ भविष्य निर्माण। 
 सोचो न,करो अब 
शीघ्र  तुम "नव प्रभात"। 
दे दो कृपा का  
तुम मुझे वरदान। 
मैं अकिंचन क्या दूँ 
सिवा एक  प्रणाम। 
ह्रदय घट का 
 भयभीत,काँपता 
नन्हा उपहार। 
स्वीकार हो यदि  तो  
और भी करुँ अर्पण 
अवगुणों का विपुल भण्डार।
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Tuesday 21 July 2015

328 - योग शक्ति




भारत माँ की योग शक्ति का जगह-जगह जयकार हुआ
निखिल चेतना का फिर ऐसे,जन-जन दिव्याभास हुआ।

जगदगुरु के रूप में अपने,राष्ट्र का पुनः श्रेष्ठ सम्मान हुआ
योग दिवस के श्रीगणेश से योग का अप्रतिम विस्तार हुआ।

असंख्य मन,प्राण,देह का समवेत अकल्पित योग हुआ
तुमुल उठे उल्लास से फिर,धरा का कण-कण पावन हुआ।

नर-नरेंद्र हो गए सभी,कायाकल्प कुछ ऐसा हुआ
धर्म-जात,ऊँच-नीच का,भेद समूल फिर नष्ट हुआ।

इंद्रप्रस्थ पर नई-नई सी भोर लिए,दिनकर का प्रकाश हुआ
साथ चलेंगे हाथ पकड़ सब,स्वर्णिम भविष्य आश्वस्त हुआ। 

Monday 20 July 2015

327 -सपने हर कदम टूटते हैं....तेरे-मेरे

सपने हर कदम टूटते रहे,हर बार कांच से  तेरे- मेरे
चल ये भी लिखा रहा होगा,नसीब में भोगना तेरे-मेरे।

हर कोई अपने में इस कदर मशगूल दिखता है यहाँ
कोई मिले,किससे मिले,भला कब तक यहाँ यार मेरे।

बारिश जो हुई रात बाहर,छींटे भिगो गए कुछ मुझे
ये अलग बात है ख्वाब अधूरे,ठगे से रह गए सब मेरे।

आकाश छूने के लिए,नारियल से लम्बे तो होते चले गए
भाग्य के श्रीफल मगर, टूट कर जमीं पर बिखरते रहे मेरे।

"उस्ताद" तुम्हारी तो हर बात ही अलहदा है जमाने से
ग़मों का बोझ मेरा,उठा  चलते रहे हो हर घड़ी साथ मेरे। 

326- तेरा गम - मेरा गम

तेरा गम मुझसे कहाँ छुपा है, मेरा दर्द तुझसे भला कहाँ
रास्ता एक ही अपने सफर का,जाने अपनी मंजिल कहाँ।

बस चलते ही चले जाना,मील के पत्थर नहीं जहाँ
ये तो तू भी जान रहा,नसीब में अपने उजाला कहाँ।

हर दिन,हर घड़ी एक आह सी,भरती रहती अपनी सांस 
मुस्कुराना भूल गया तू तो यारा,मुझको आता भला कहाँ।

झूठ,बेईमानी,मतलबपरस्त,ढलती जा रही ये दुनिया
पाक ईमान मिज़ाज लिए,मिलता भला "उस्ताद" कहाँ।