श्रीराम अर्धसहस्त्राब्दी पश्चात,अंततः "विराज" गए अपने जन्मस्थान में।
अयोध्याजी षोडश-श्रृंगार कर,अद्भुत कान्तिमय सज गई अल्पकाल में।।
देव,गंधर्व,यक्ष,मानव उमड़ पड़े सभी,फिर तो यहां अप्रतिम उल्लास में।
शंख,ढब,शहनाई,तुतरी बजने लगे सब,वाद्य-यंत्र पुरजोर स्वतः उत्साह में।।
मेघ श्याम सदृश राम के,अमृत-रस-भरे पग पड़ रहे,जब वर्षों तपी उर भूमि में।
आह्लादित क्यों न नर्तन करे,समस्त सृष्टि फिर भला इस विलक्षण कालखंड में।।
नव अभ्युदय हमारी मात्रभूमि का,श्रीगणेश सिद्ध है अब बात की बात मैं।
श्रीराम के आगमन से,नींव पड़ने लगी देखो,रामराज्य की हमारे भारतवर्ष में।।
जनता-जनार्दन ऊंच-नीच मिटा सब,तालबद्ध गायेगी प्रमुदित,अब एक तान में।
विश्वगुरु, सिरमौर बन पुनः उभरेगा राष्ट्र हमारा,एक नूतन
परिधान में।।
नलिन पाण्डे " तारकेश"