सबको मुबारक होली
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नवल किशोर किशन हमारे होली के बहुते बड़े रसिया।
आय गयो है मास फागुन को सुनकर नाचे ता-ता थैया।।
रंग न जाने कितने भरकर झोली में निकल पड़त हैं भैया। ग्वाल-बालन टोली ले बाजे-गाजन संग ढूंढे कोई गुइयां।।
हास-परिहास करें भरपूर फिर रंग दें हाथ पकड़के दइया।
श्याम वर्ण की या हो गोरी फर्क पड़े नहीं किशन कन्हैया।।
किसी बहाने पकड़ प्यार से करते रसभरी मीठी बतिया। एक बार जाल फंसे जो मधुसूदन के तो कैसे उड़े चिरैया।।
गान सुना मधुर कंठ से मोहित कर दे ऐसो है बड़ो गवैया।
ब्रजमंडल यूँ ही न नाम बड़ो है जनम-जनम को खेलैया।।
राधारानी पर हार न माने खूब खिलाती इसको गुझिया।
भांग मिली जब खाकर झूमे तो सबक सिखाए कन्हैया।।
ऐसी होली बरसाने में हर रोज जमे सांची कहें सजनिया।
देख-देख खिले नवल-नलिन,भक्तन उर के ताल-तलैया।।
।।जय श्री राधे जय श्री कृष्ण ।।
नलिनतारकेश