लो घटा ने आज खोल दी जब जुल्फ काली-घनी अपनी।
दिल की धड़कनों से बजने लगी बांसुरी सुरीली अपनी।।
हुआ मौसम आशिकाना तो कदम फिर से झूमने लगे।
लगा जिंदगी के बंद ताले की मिल गयी चाबी अपनी।।
आंखों में सुरूर बढ गया नजरें जब उनसे जा के मिल गयीं।
प्यास जाने जन्मों की कितनी एक पल में मिट गयी अपनी।।
सूखी,उजाड़ जमीन पर बूंदे जब सावन की बरसने लगीं। कायनात झूम के बेसाख्ता कलियां खिलाने लगी अपनी।।
"उस्ताद" था इंतजार बेसब्री से बड़ा इसी बरसात का हमको।
रहा खुदा का ये शुक्र बड़ा फरियाद उसने जो सुन ली अपनी।।