दर्दे सैलाब उफन जब-जब भी डुबोता है मुझे।
लिखके ग़ज़ल कलम तब-तब बचाता है मुझे।।
उजालों के बदलते रंग बहुत देख लिए जनाब।
अब तो बस ठहरा हुआ अंधेरा सुहाता है मुझे।।
हर कोई अपने आप में इस तरह गुम है।
मिलाते हाथ भी लगता चिढ़ाता है मुझे।।
सुर-ताल,नफासत-सदाकत सब भूल जाइए।
तहज़ीब का यूं बेवजह रोना सताता है मुझे।।
"उस्ताद" यहाँ नहीं कोई किसी का सच मानिए।
हर हाल बस एक खुदा ही ढाढस बंधाता है मुझे।।
नलिनतारकेश।।
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