कृपा करो शीघ्र अब तो मेरे नाथ
बना दो इस अनाथ को सनाथ।
न जाने कितने जन्म-जन्मान्तरों से
तुमसे हे प्रभु मिलन की साध से
सतत बहती जा रही जीवन नदी
इस जन्म की भी बीत गयी आधी सदी।
आँधी से काम,क्रोध,मोह,लोभ की
पथ-प्रवाह अपना ये बार-बार भटकी।
उत्साह,उल्लास से ये जो हुई शुरुआत थी
तुमसे मिलने की जो लौ दिल में जगी थी
अब इस जन्म भी वो व्यर्थ जा रही
काल की गति शीघ्र बहती जा रही।
हथेली से रेत फिसलती जा रही
प्रभु तुम्हें क्यों नहीं दया आ रही।
अब तो तुम ही मेरे नाथ रखवारे
कर के देख लिए अपने प्रयत्न सारे।
पर कहाँ कुछ भी हूँ मैं बदल सका
जगत छोड़ो खुद को भी न बदल सका।
एकटक एकमात्र निहारता,वो तुम्ही हो
हे हरी अब मेरी लाज तोतुम्हीं हो।
कहाँ जोग,जप,तप,स्मरण-नमन
बस माया की लगन,भटक रहा मन.
तो करो अब और न विलम्ब सजन
शेष रहा जितना सांसों का यजन
उसमें होता रहे बस तेरा ही भजन।
हरे राम,हरे कृष्ण,गाऊँ मैं मगन
गाते-गाते हो तेरा-मेरा मिलन।