#आदियोगी #शिवेन सह मोदते
आदियोगी तुम तो हो अनन्त,सृष्टि के आधार
सत्यं-शिवं - सुंदरं के,अविस्मरणीय अवतार।
आदि - अंत से परे तुम्हारा,है अबूझ आकार
अवतरण चर-अचर जगत में,अकथनीय उपकार।
एक दृष्टि नष्ट करते,'नलिन' नयन विकार
हाथ द्वय त्रिशूल डमरू,कंठ-सर्प हार।
कपूर देह लपेटे,भोग-विलास बना क्षार
आशुतोष कृतकृत्य हम,बार-बार तुम्हें निहार।
ग्रहण कर स्वयं हलाहल, विश्व देते सुधोपहार
योगयोगेश्वर-अखण्ड अविचल,सदा-सदा के निर्विकार।
महादेव अंश हम तेरे हैं सभी,करते नमन बार-बार
शिव भाव बसे उर हमारे,यही सदा करुण पुकार।
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