नीला अनन्त आकाश
जब होता है शांत
बिखेरता है मृदुल छांव
तो चलना कितना आसान
कर देता है मेरे लिए।
मेरे लिए यानी सारी
कायनात के लिए
लेकिन वही आकाश
जब प्रचंड सूर्य की
रश्मियों से होता है क्लांत
तो जन-जीवन
मुरझाने लगता है
झुलसने लगता है
सबका तन मन
ठिठक जाते है सभी
जन-पद।
...पर मुझे तो चलना होगा
निरंतर यूं ही अविराम
दरअसल जो छांह बटोरी है
आकाश से मैंने अपने लिए
उससे उपकृत तो होना है
आकाश को भी तो
शीतल छाँव चाहिये
मुझे उसके लिये
कड़ी धूप में चलना है।
कायनात के लिए
लेकिन वही आकाश
जब प्रचंड सूर्य की
रश्मियों से होता है क्लांत
तो जन-जीवन
मुरझाने लगता है
झुलसने लगता है
सबका तन मन
ठिठक जाते है सभी
जन-पद।
...पर मुझे तो चलना होगा
निरंतर यूं ही अविराम
दरअसल जो छांह बटोरी है
आकाश से मैंने अपने लिए
उससे उपकृत तो होना है
आकाश को भी तो
शीतल छाँव चाहिये
मुझे उसके लिये
कड़ी धूप में चलना है।
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